gustaakh kabootar

शनिवार, 24 सितंबर 2016

नहीं सुधरोगे बाई गॉड


                



                                   मैं ठहरा कबूतर , मेरी  तो आदत ही है , सब पर नज़र रखना।  अब भगवान  ने मुझे  तेज़ कान और चौकस आँखें दी ही इसीलिए है की मैं  सब की जासूसी कर सकूँ । सब देखता हूँ मैं , कौन क्या कर रहा है , कैसे कर रहा है। जब तक मैं  किसी की जासूसी ना कर लूँ  , मेरे  हलक से एक दाना नहीं उतरता , यकीन मानिये । 
                                   तो जनाब मैं आया शहर में नया - नया , और लगा अपने कबूतर धरम का पालन करने । कभी इसकी खिड़की , कभी उसकी चौखट , कभी ये आँगन , कभी वो छज्जा। बड़ा ही  मजा आ रहा था  कसम से , क्यूंकि अमूमन  तुम्हारे घरों में बर्तन बज रहे होते है । मेरा मतलब तुम्हारे घर में छोटी -छोटी बातों को लेकर सिर - फूडवल्ल  तो आम बात है । 
                    एक दिन मैं एक मदमस्त कबूतरी का पीछा कर रहे था। सोचा आज  ससुरी का घोंसला देख के ही जाऊंगा , की तभी मुझे एक घर से कुछ तेज़ - तेज़ आवाज़ें सुनायी दी। मैंने अपनी आशिक़ी को विराम दिया और अपनी  जिज्ञासा का पीछा करते हुए घुस गया उस घर में जहाँ हंगामा हो रहा था। बड़े भाई और छोटे भाई में किसी बात  लेकर  नोक - झोंक हो गयी और जल्द ही वो नोक - झोंक , 'तू तू - मैं मैं'  में बदल गयी  , छोटे की  भाभी यानि बड़े की बीवी , समझाइश  के इरादे लिए दोनों के बीच आ गयी , पर जो होना था , वो होकर रहा  और वो  तू तू - मैं मैं कब जूतम -पैजार में बदल गयी , पता  ही नहीं  चला । और फिर ये जड़ी  बड़े ने गोबर लगी जोधपुरी जूती छोटे के गाल पर । छोटा सुन्न , पथराई आँखें लिए खड़ा है , सन्नाटा पसर गया है , माहौल में भारीपन आ गया है। बड़ा , छोटे की  तरफ पश्चाताप भरी निगाहों से देखता है और भाभी औरतों का  एकमात्र   emergency expression लिए यानि  मुँह पर हाथ रखकर  स्तब्ध् आँखों से बड़े को देखती है। छोटा भाई आखिर कितना सहता , फूट पड़ा और रोते हुए बोला - "भाभी, वो पड़ोस वाली मंजू है ना उससे भैया का टांका सेट  है। भैया उसे "इश्कियां" दिखाने भी लेके गए थे। "
                  मैंने भी देखा था यार उस मंजू को उड़ते - उड़ते , ऐसी भी कुछ ख़ास  नहीं थी खैर देवर जी के इस क्रांतिकारी बयान ने बड़े भैया का सूपड़ा साफ़ कर दिया था मानो। भाभी सिसकती हुई  रसोई की तरफ दौड़ पड़ी , हमनें सोचा की अब वही मिट्टी का तेल छिड़क कर चीखने - चिल्लाने वाला scene आएगा। पर हम क्या देखते है की भाभी जी साक्षात् माँ चंडी का रूप धारण किये हुए धमधमाती हुई बाहर आयीं , उनके एक हाथ में बेलन था और दूसरे हाथ में कड़छी चमक रही थी। इससे पहले की बड़े भैया कुछ समझ पाते , बेलन का एक ज़ोरदार प्रहार उनके माथे पर हुआ । माशा - अल्लाह , क्या गज़ब का निशाना था भाभी का । बड़े भैया नीचे पड़े धुल चाट रहे थे। और अब जो हुआ , वो मेरी कल्पना से परे था। अगले ही पल भाभी जी का पतिव्रता mode on हो गया और वह बड़े ही नाटकीय ढंग से साडी के पल्लू को सांसों की गर्मी देकर , बड़े के माथे पर छपी बेलन की मोहर पर सेक करने लगी। अब मैं बैठा था रोशनदान में , हंस - हंस कर मेरी चोंच दुखने लगी , हँसते - हँसते गिर जाता कसम से किसी तरह सम्भाला खुद को  । मैंने  वहां से आने में ही अपनी भलाई समझी और उड़  चला अगला ड्रामा  देखने।
                              अगले दिन फिर निकल पड़ा मैं सैर - सपाटे पर और क्या देखता हूँ जनाब की - वही बड़े भैया , वही पड़ोस की मंजू और वही नज़दीकियां...नहीं सुधरोगे बाई गॉड।