gustaakh kabootar

शनिवार, 1 अक्तूबर 2016

टीवी का चस्का




गलत क्या है इसमें भला ? , हम कबूतर लोग तो टीवी की शान हमेशा से बढ़ाते आये है। तो हम भी टीवी पर आने का शौक रखते है तो क्या बुराई है इसमें बताइये?,पर ये जो किया है तुम इंसानो ने हमारे साथ ये बिल्कुल भी सही नहीं किया, कहे देते है। गैरत ही जवाब दे गयी तुम इंसानो की तो।अब दुनिया के सामने अपना दुखडा न रोये तो कहाँ जाकर सर फोड़े। खैर , आप सबको सुनाते हैं। कलेजे पर हाथ रखकर सुनिएगा ,कहीं भक्क् से बाहर को न निकल आए , हुआ कुछ यूं की हम वो बन्ना जी की थड़ी पर बैठे कबूतरियाँ टाप रहे थे ।तभी क्या देखते है की बन्ना जी के खोखे में रखे टीवी के अंदर एक काला कलूटा बाज़ अपनी हवाई अठखेलियां दिखा रहा था। लोग उसे देखने में इतने मशग़ूल थे की कई लोंडो ने तो गरम चाय से अपनी जीभ जलवा ली। पर उन् बेसुधों को ये नहीं पता था की कबूतर तो नींद में भी बाज़ से तेज़ उड़ सकता है। हमें जलन वलन नहीं हो रही थी बाज़ से , पर युहीं हमने सोचा की अगर ये टेढ़ी चोंच वाला मुआ बाज़ टीवी पर आ सकता है , तो हमारे जैसा एक हैंडसम कबूतर तो छा ही जायेगा। बस यही सोचकर हमने पंखो में हवा भरी और निकल पड़े fly high नामक टीवी चैनल के दफ्तर की ओर । हम जैसे ही वहां पहुंचे तो क्या देखते है की लगभग सभी जानवर और पक्षी वहां ऑडिशन्स के लिए पहुंचे हुए थे। हम गलती से शेर के शिकार क्षेत्र में पहुँच गए , वहां देखा की ज़ेबरा भाई की तो जान पर बनी हुई थी। खूंखार शेर अपनी मोटी तोंद और खून से सनी , बदबू से भभकती दाढ़ी हिलाता हुआ ज़ेबरा भाई के पीछे दौड़ा जा रहा था और उस शेर के पीछे एक वन्य-जीव प्रेमी सा दिखने वाला आदमी कैमरा लेकर लगभग शेर की ही गति से भाग रहा था की तभी एक ब्लैक एंड व्हाइट दाढ़ी वाला बूढ़ा सिगरेट का धुँआ उड़ाते हुए शेर और ज़ेबरा के बीच में क्रमशः कूदा , चिलाया और शेर की कनपट्टी पर एक लाफा रसीद करते हुए बोला - "कट.....कट....कट....feelings कहाँ है शेरू, भूख दिखनी चाहिए नज़रो में।"
                शेर मियां के गाल लाल, गुर्दे उछल कर मुँह तक आ गए थे और ज़ेबरा फर्श पर लेटा , दांत फाड़े हंस रहा था। हम समझ चुके थे की वो इंसान जिसने शेर के गाल लाल किये थे , एक professional director था। फिर हमने ज़रा भी देर नहीं की और अपनी चोंच उसके चरणों में रख दी  "हमें भी स्टार बना दीजिये डायरेक्टर बाबू " -हमनें लगभग गिड़गिड़ाते हुए कहा।

"अरे दूर हटाओ इस घटिया टुच्चे कबूतर को " उसने झिड़कते हुए कहा

" सर अब तो हम आपके चरण-कमल तभी छोड़ेंगे जब आप हमें भी इस तोंदू शेर और बेढंगे ज़ेबरे की तरह स्टार बनाओगे।

"अच्छा अच्छा अब दूर हटो.... और मुन्ना के साथ चले जाओ वो तुम्हे काम समझा देगा" - डायरेक्टर ने एक अधमरे से इंसान जिसका नाम मुन्ना था ,की तरफ इशारा करते हुए कहा।

"पर सर , कबूतरों के ऑडिशन्स तो बंद हो गए है।....इसको कैसे..."

(डायरेक्टर ने बीच में टोकते हुए ,उसके कान में कुछ फुसफुसाया। फिर वो अधमरा इंसान उर्फ़ मुन्ना अपने चेहरे पर लकडबग्घे की सी मुस्कान लिए हमें अपने चंगुल में दबाकर एक ईमारत में ले गया जिस पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था "पक्षी - विभाग"। हालाँकि उसके चंगुल में हमें कुछ अच्छा महसूस नहीं हो रहा था , पर पक्षी विभाग में एंट्री मारते ही हमें मन-लुभावन , कमसिन ,हसीन कबूतरियां दिखाई दी , जिन्हें देख कर हमने अपनी चोंच से छाती में हवा भर कर छाती फैला ली। मुन्ना ने अब हमें चंगुल मुक्त किया और ज़मीन पर कुछ पटकने के अंदाज़ में छोड़ा। हमने खुद को संभाला और उन् कबूतरियों के सामने से गुटर गूं करते हुए आगे निकले तो क्या देखते है की वो दैत्याकार बाज़ , जिसे हमने टीवी पर देखा था ,वो हमारे सामने सीना ताने खड़ा था और हमें उसकी आँखों में भूख और director की भाषा में feelings साफ़ साफ़ दिखाई दे रही थी। हमने आगे से खींचकर जितनी हवा अपनी छाती में भरी थी , उससे कहीं ज्यादा पीछे से निकल गयी और यह घटना पूरी तरह गैर-इरादतन थी। अब शायद ये मेरी उस हवा का प्रकोप था की उस वक़्त उस दानवनुमा बाज़ ने नाक सिकोड़ते हुए वहां से विदा ली और मैंने राहत की साँस ली और इस बार छोड़ी नहीं , ये सोचकर की माना ये बाज़ अब तक यहाँ का राजा था पर इसकी बादशाहत खत्म करने के लिए ही ऊपर वाले ने मुझे यहाँ भेजा है। अब मैं सीधे मुन्ना के पास गया और कहा-" मैं भी उस बाज़ की तरह मशहूर होना चाहता हूँ , ताकि टीवी पर लोग मुझे देखें और मेरी स्पीड को देख कर दंग रह जाये।"

मुन्ना - "उसके लिए तुम्हे बहुत मेहनत की जरुरत है। तुम्हारी 7 दिन की ट्रेनिंग होगी , जिसमे तुम्हे अपनी मैक्सिमम स्पीड तक पहुंचना होगा।ट्रेनिंग के बाद डायरेक्टर साहब तुम पर एक छोटी फ़िल्म बनाएंगे , जिसमे तुम बतौर हीरो लिए जाओगे और एक हसीन कबूतरी तुम्हारी हेरोइन होगी।"

अब मेरा सीना गर्व से फूल गया । शूटिंग तो जब होगी , तब होगी पर मुन्ना ने आज ही मुझे हीरो बना दिया था।

मैंने 7 दिन खूब मेहनत की और आखिरकार वो दिन आ ही गया जिसका मुझे बेसब्री से इंतज़ार था।  make-up दादा मेरे पंख संवार रहे थे और मैं अपनी कबूतरी की नज़रों में नज़रें पिरोये बैठा था की तभी डायरेक्टर सर धमधमाते हुए वहां पहुंचे और चिल्लाते हुए बोले-"मुन्ना scene समझा दो कबूतर बाबू को ?"

मुन्ना-"बस अभी समझा देता हूँ सर"

मुन्ना भागा भागा मेरे पास आया और मुझे सीन बताने लगा

मुन्ना-"देखो भाई , scene काफी आसान सा हैं.... तुम और तुम्हारी कबूतरी एक डाल पर बैठे बतिया रहे हो की अचानक कबूतरी को पहाड़ के पीछे से एक डरावनी आवाज़ सुनायी देती हैं । तुम उस डरावनी आवाज़ का पीछा करते हुए पहाड़ के उस पार जाते हो और लौट कर वापिस नहीं आते हो।

मैंने डरी आवाज़ में पूछा-"मुन्ना भैया पहाड़ के उस पार ऐसा क्या है जो मैं लौट कर नहीं आता"

मुन्ना(कुटिलता से मुस्कुराते हुए)-"अरे मियां कबूतर, ये तो बस एक scene है। इतना मत घबराओ। तुम्हे बस पहाड़ के पार जाना हैं , ठीक है।अब तैयार रहो , डायरेक्टर साहब कभी भी बुला सकते है।

मेरे पंख सहलाते हुए मुन्ना चला जाता है।

मेरा डर के मारे बुरा हाल.....मैं भागा भागा डायरेक्टर बाबू के पास पहुंचा

"पहाड़ के उस तरफ कौन है डायरेक्टर बाबू....बताइये न ?"

"अरे scene है यार.....इतना क्यों घबरा रहे हो। , जाओ shot के लिए तैयार रहो।"

अब मैं चुपचाप जाकर वहां कबूतरी के साथ डाल पर बैठ गया।

मुन्ना कैमरे के सामने खड़ा हुआ और बोला-

"फ़िल्म-कबूतर का शिकार , टेक 1st एंड लास्ट"

हम कुछ समझ पाते इससे पहले डायरेक्टर बाबू की पर्दाफाड़ आवाज़ स्टूडियो में गूँज पड़ी।

"Light , sound , camera........ actionnn"

अब कैमरा मुझे देख रहा था और मैं उस कबूतरी को।

"जानू, क्या तुम्हे पता है उस पहाड़ के पीछे क्या है"-मैंने कबूतरी का कान ढूंढकर उसमे कहा।

तभी एक भयानक सी आवाज़ उस पहाड़ के उस पार से आई और सीन के मुताबिक कबूतरी घबराई हुए बोली।

"Rowdy...... ये आवाज़ कैसी है , मेरा तो दिल बैठा जा रहा है।"

"मेरा भी दिल कुछ बैठ सा रहा है , चलो न कहीं और जाकर बैठते है।"-मैं डरते हुए उससे बोला।

फिर वो धीरे से मेरे नज़दीक आई और लगभग चिपकते हुए बोली-"ये क्या बोल रहे हो , अपना dailogue बोलो।"

फिर न जाने क्या हुआ , जैसे ही उसका आधा किलो का मुलायम बदन मेरे पौन किलो गठीले बदन से टकराया। मुझमे rowdy घुस गया और वहीँ से मेरा बुरा वक़्त शुरू हो गया।

"तुम घबराओ मत जानू , जिसने भी तुम्हे डराने की ज़ुर्रत की है। मैं उसका चोंच काट कर तुम्हारे पंजो में रखूँगा।"-मैं अपने शरीर को फुलाते हुए बोला।

फिर मैंने डाली पर अपनी चोंच घीसी और उड़ चला उस पहाड़ की तरफ ।

 कबूतरी की छुअन की खुमारी अब भी नहीं उतरी थी । मैं उड़ा चला जा रहा था और मैं कब पहाड़ के उस पार आ गया मुझे पता ही नहीं चला। मैं एकदम rowdy के किरदार में डूब गया था। मैंने पहाड़ के उस तरफ जाकर ललकारा-

"किसकी इतनी हिम्मत जो 2 प्यार करने वालो के बीच अपनी चोंच घुसा रहा है , माँ के दाने खाये है तो सामने आ।"

तभी पूरा आस्मां पंखो की फड़फड़ाहट से गुंजायमान हो गया , सभी पक्षी अपने अपने घोंसलों में घुस गए, फ़िज़ा में दहशत पसर गयी और वही भयानक आवाज़ फिर से निकालते हुए वही खतरनाक बाज़ मुझे , मेरी तरफ आता दिखायी पड़ा। उसकी रफ़्तार बादलों को चीर रही थी और उसकी चोंच में भाले सा पैनापन था , उसके नुकीले पंजो के 2 इंच लंबे नाखूनों में फंसी चूहे की पूँछ उस बाज़ के मिलनसार होने को सिरे से खारिज कर रही थी। मेरे होश फाख्ता हो गए  , बाज़ ने मुझ पर लगभग झपटा मार ही दिया था कि अचानक मैंने u-turn मारा और जान बचाने की और मौत को हराने की मेरी दौड़ शुरू हो गयी । वो मुआ मेरे इतने करीब था कि मैं उसके चौड़े डैनों से आती हवा महसूस कर पा रहा था और यक़ीनन वो भी महसूस कर रहा था वो हवा जो डर के मारे मैं छोड़ रहा था , मैं हवा छोड़ता गया और वो पिछड़ता गया। पर हवा कब तक साथ देती भला। धीरे धीरे खत्म होने लगी और बाज़ भी साला पक्की नाक का था , कमीने की चोंच टेढ़ी हो गयी थी बदबू के मारे पर हार मानने को तैयार न था। हमनें भी कोई कच्चे दाने नहीं खाये थे। मैंने हवा के आखिरी वार से उसे चित करने का खुद से comittment कर लिया था। वो आखिरी गैस का गुब्बार मैं उसकी चोंच पर फोड़ना चाहता था , मैंने पूरा ज़ोर लगाया , और धकेल दिया बाहर जो कुछ भी मेरे अंदर था। माहोल में गीलापन फ़ैल गया , मेरे अंदर के तरल ने मेरे अंदर की गैस को पछाड़ कर खुले आसमान में स्वछन्द उड़ने का जैसे license पा लिया था। पर ये क्या.....मेरा निशाना चूक गया और मैंने देखा की मेरी बींठ उडी जा रही थी मस्त गगन में एक कटी पतंग की तरह । बाज़ की उड़ान परवान पर थी और मेरी नज़र मेरी बींठ पर । वो बेतरतीब तरीके से इधर उधर फ़ैल गयी थी और उसका एक बड़ा हिस्सा डायरेक्टर बाबू की तरफ बढ़ा चला जा रहा था , इससे पहले कि डायरेक्टर बाबू सम्भल पाते मेरे आखिरी वार ने अपना काम कर दिया और उनका चेहरा मेरी बींठ से पुत्त गया ।

मुझे उनकी चीख सुनायी दी "pack uppppppp".

और उनके चिलाते ही उस कातिल बाज़ ने अचानक u turn मार लिया और मेरा पीछा छोड़ दिया। पर मौत का खौफ इस कदर रम गया था मेरे पंखों में कि वो नहीं रुके और मैंने बन्ना जी की थड़ी पर पहुँच कर ही चैन की गुटर गूं की। वहां बैठे लोंडे उसी बाज़ के हवाई करतब टीवी पर देख तालियां बजा रहे थे। अब मैंने टीवी के चस्के से तौबा कर ली। वैसे मेरी हवाई कलाबाजियां भी कुछ कम न थी....मानना पड़ेगा आपको।




















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