gustaakh kabootar

सोमवार, 24 अक्तूबर 2016

पहली मुलाकात


                    बात सन् 2002 की है , जब पापा हमें जयपुर घुमाने ले गए थे। पहली बार इतना बड़ा शहर देखा था , पहली बार तांगे पर बैठे थे , तांगे वाले ने घुमा फिरा कर हमें रामनिवास उद्यान के सामने ला खड़ा किया। सब रोमांचित थे , पापा हमें चिड़ियाघर लेकर आये थे। हमारी टिकट नहीं लगी थी क्योंकि पापा उस वक़्त वन विभाग में jr. Accountant थे। हमारे अंदर कदम रखते ही एक जोरदार दहाड़ से हमारा स्वागत हुआ , सबके चेहरे मारे रोमांच के लाल पड़ गए थे , चेहरे पर अधूरी मुस्कराहट लिए मैनें मम्मी से पूछा "ये कौन बोल रहा है मम्मी ?"
"शेर बोल रहा है बेटा" मम्मी ने मुस्कुरा कर जवाब दिया।
"बेटा ये tiger की दहाड़ है" वहां खड़े एक आदमी ने कहा जो मुझे देखकर मुस्कुरा रहा था।
"Tiger मतलब बाघ " मैंने मन में सोचा और वही किताबों वाले चित्र मेरी आँखों के सामने घूमने लगे। धीरे धीरे हम आगे बढ़े और सभी जानवरों को मैं पुरे उत्साह से देख रहा था क्योंकि वहां मौजूद जानवरों में से मैंने सिर्फ बंदर ही देख रखे थे । सभी मेरे लिए नए थे पर मुझे tiger देखने की बहुत जल्दी थी , मैं हर दूसरे पिंजरे पर पापा से पूछता था "पापा tiger कहाँ है??"
और पापा भी हर परेशान पिता की तरह कहते थे "आएगा आएगा"। मैं अधीर हो रहा था , पहली दहाड़ की गूँज अब तक मेरे कानों में थी। मैंने मम्मी से हाथ छुड़वाया धीरे से और तेज़ी से हर पिंजरे की तालाशी लेने लगा। छोटे पिंजरे ख़त्म हो गए। एक बहुत बड़ा मैदान आया , चारों और लोहे की जाली की मजबूत दीवार । मैंने अंदर देखा वो पेड़ की छाया में सो रहा था । मैं पहचान गया , वो शेर था , बब्बर शेर। मैंने उसे परेशान नहीं किया और आगे निकल गया। कुछ दूर चलने पर घने पेड़ो का झुण्ड नज़र आया और उसके  चारों और गोलाई में बना एक तालाब था , उस तालाब में किसी जानवर की कटी टाँग  जैसा कुछ तैर रहा था , डरावना सन्नाटा था , पेड़ों पर पंछी भी बहुत कम थे और जितने भी थे , चुप थे । तभी मैने देखा की तालाब के बीचोंबीच पेड़ के नीचे किसी जानवर की कटी फटी लाश पड़ी थी , वो इस तरह से थी कि कहना मुश्किल था की ये कौन जानवर रहा होगा। तालाब के चारों ओर लगी लोहे की जालियां पकड़े मैं इसी पहेली को सुलझाने में लगा था कि मुझे एक हल्की गुर्राहट सुनाई दी । मैंने उस तरफ देखा तो जाली पर से मेरे हाथ खुदबख़ुद हट गए और मैं जाली से हट कर सीधा खड़ा हो गया। बाघ तालाब में था और मुझे घूर रहा था और मेरी आँखें भी न जाने क्यूँ उस पर से नहीं हटीं , उसकी आँखों की पुतलियाँ फ़ैल सिकुड़ रही थी । उसके मुँह में वो टाँग थी जो कुछ seconds पहले मैंने तालाब में तैरती देखी थी। मैं उसे देखता ही रहा बिना हिले और फिर...वो हल्का गुर्राया । मुझे डरा कर भगाने के लिए उसे दहाड़ खर्च करने की जरुरत ही कहाँ थी.....मैंने मारे डर के भागना शुरू कर दिया और तब तक भागता रहा जब तक मम्मी का हाथ नहीं पकड़ लिया। मेरा परिवार अभी शेर तक पहुँचा था। वो तब भी सो ही रहा था। मैंने मम्मी का हाथ खींचा और तालाब की तरफ ले आया। अब वहां सन्नाटा नहीं था , पंछी बोलने लगे थे , पेड़ के नीचे वो लाश अब भी थी , तालाब में तैरती टाँग गायब थी । बाघ अपने पिंजरे में लौट गया था। हमनें इंतज़ार किया पर वो नहीं दिखा ,पर मैं खुश था.....मैं उससे  मिल चुका था।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें